Aparna Sharma

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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023

स्वैच्छिक 


नारी खुद में पूरा ब्रम्हांड समेटे है 🌹


यूँ ही नहीं मान्यता है बिन्दी की,
स्त्री में छुपे भद्रकाली के रूप को शान्त करती है ।

यूँ ही नहीं लगाती काजल,
नकारात्मकता निषेध हो जाती है 
जिस आँगन स्त्री आँखों में काजल लगाती है

होंठों को रँगना कोई आकर्षण नहीं,
प्रेम की अद्भुत पराकाष्ठा को चिन्हित करती हुई 
जीवन में रँग बिखेरती है ।

नथ पहनती है,
तो करुणा का सागर हो जाती है ।

और कानों में कुण्डल पहनती है,
तो सम्वेदनाओं का सागर बन जाती है ।

चूड़ियों में अपने परिवार को बाँधती है,
इसीलिए तो एक भी चूड़ी मोलने नहीं देती ।

पाजेब की खनक सी मचलती है,
प्रेम में जैसे मछली हो जाती है ।

वो स्त्री है साहब... स्वयं में ब्रह्माण्ड लिए चलती है ll

अपर्णा "गौरी" 

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3 Comments

बहुत खूब

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Punam verma

13-Apr-2023 09:20 AM

Very nice

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Abhinav ji

13-Apr-2023 08:33 AM

Very nice

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