यूँ ही नहीं मान्यता है बिन्दी की,
स्त्री में छुपे भद्रकाली के रूप को शान्त करती है ।
यूँ ही नहीं लगाती काजल,
नकारात्मकता निषेध हो जाती है
जिस आँगन स्त्री आँखों में काजल लगाती है
होंठों को रँगना कोई आकर्षण नहीं,
प्रेम की अद्भुत पराकाष्ठा को चिन्हित करती हुई
जीवन में रँग बिखेरती है ।
नथ पहनती है,
तो करुणा का सागर हो जाती है ।
और कानों में कुण्डल पहनती है,
तो सम्वेदनाओं का सागर बन जाती है ।
चूड़ियों में अपने परिवार को बाँधती है,
इसीलिए तो एक भी चूड़ी मोलने नहीं देती ।
पाजेब की खनक सी मचलती है,
प्रेम में जैसे मछली हो जाती है ।
वो स्त्री है साहब... स्वयं में ब्रह्माण्ड लिए चलती है ll
सीताराम साहू 'निर्मल'
13-Apr-2023 12:09 PM
बहुत खूब
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Punam verma
13-Apr-2023 09:20 AM
Very nice
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Abhinav ji
13-Apr-2023 08:33 AM
Very nice
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